Powerful congress leader Shashi Tharoor को राष्ट्र पहले कहने की सज़ा? क्यों कांग्रेस अपने ही देशभक्त नेता शशि थरूर को कर रही है अनदेखा?

Shashi Tharoor
Shashi Tharoor

राष्ट्र पहले कहने की सज़ा? क्यों कांग्रेस अपने ही देशभक्त नेता शशि थरूर को कर रही है अनदेखा?

कभी-कभी, जब कोई नेता अपनी पार्टी की विचारधारा से हटकर, सिर्फ और सिर्फ अपने देश के हित की बात करता है, तो उसे सराहना मिलनी चाहिए। लेकिन, क्या यह हमेशा होता है? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor), जो अपनी वाक्पटुता और वैश्विक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं, आजकल एक अजीब स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक मंचों से बार-बार ‘राष्ट्र पहले, पार्टी बाद में’ का नारा बुलंद किया है, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर। लेकिन, इसके बदले उन्हें क्या मिल रहा है? अपनी ही पार्टी के कुछ सदस्यों से तिरस्कार और अनदेखी के आरोप। क्या यह सच में देशप्रेम की कीमत है जो शशि थरूर (Shashi Tharoor) चुका रहे हैं?


जब ‘राष्ट्र पहले’ की आवाज़ उठी, तो क्यों मचा हंगामा?

19 जुलाई, 2025 को कोच्चि में छात्रों से बात करते हुए शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने एक ऐसा बयान दिया जिसने कांग्रेस के भीतर हलचल मचा दी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी पहली निष्ठा राष्ट्र के प्रति है, और राजनीतिक दल तो सिर्फ देश को बेहतर बनाने के माध्यम हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर, जहाँ देश की संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा दांव पर लगी हो, सभी राजनीतिक दलों को मतभेदों को भुलाकर एक साथ आना चाहिए। थरूर ने पंडित नेहरू के उस कथन को याद दिलाया कि “अगर भारत ही नहीं रहा तो कौन रहेगा?” उनके इस कथन में देशभक्ति की एक गहरी भावना झलकती है, एक ऐसा आह्वान जो हर भारतीय के दिल को छू जाना चाहिए।

लेकिन, थरूर (Shashi Tharoor) की इस देशभक्ति भरी आवाज को कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ‘पार्टी लाइन’ से भटकना मान लिया। उनकी निष्ठा पर सवाल उठाए जाने लगे। क्या यह विडंबना नहीं है कि जिस पार्टी ने कभी देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, आज उसी पार्टी के भीतर एक नेता को अपने देश को प्राथमिकता देने के लिए आलोचना झेलनी पड़ रही है?


‘बेवफाई’ का आरोप: क्या देशप्रेम वाकई गुनाह है?

केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) के पूर्व अध्यक्ष के. मुरलीधरन का सार्वजनिक बयान सुनकर किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति का मन दुखी हो जाएगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि शशि थरूर को अब ‘हम में से एक नहीं’ माना जाता है, और जब तक वे राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपना रुख नहीं बदलते, उन्हें पार्टी के कार्यक्रमों में आमंत्रित भी नहीं किया जाएगा। यह एक वरिष्ठ नेता द्वारा दिया गया एक कठोर और पीड़ादायक बयान है। क्या सिर्फ इसलिए कि शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया, उन्हें अपनी ही पार्टी में पराया कर दिया गया? क्या देश के प्रति प्रेम और चिंता जताना अब कांग्रेस में ‘बेवफाई’ की श्रेणी में आता है?

 

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कुछ और कांग्रेस नेताओं ने तो थरूर पर ‘प्रो-मोदी’ होने का आरोप तक लगा दिया है। उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक प्रयासों की सराहना की, खासकर उन मामलों में जहाँ देश का हित सर्वोपरि था। क्या आलोचना और प्रशंसा के बीच की महीन रेखा भी अब धुंधली हो गई है? क्या अब हर उस व्यक्ति को संदेह की नज़रों से देखा जाएगा जो राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सरकार के साथ खड़ा दिखाई देता है, भले ही उसकी मंशा सिर्फ देश का भला हो?


एक लोकप्रिय नेता की अनदेखी: कांग्रेस क्या खो रही है?

शशि थरूर (Shashi Tharoor) न सिर्फ एक अनुभवी राजनेता हैं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित बुद्धिजीवी और वक्ता भी हैं। उनकी बातों को देश और दुनिया गंभीरता से सुनती है। ऐसे नेता को, जो राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपनी स्पष्ट राय रखते हैं, कांग्रेस को गले लगाना चाहिए था, उनकी देशभक्ति का सम्मान करना चाहिए था। लेकिन, इसके विपरीत जो हो रहा है, वह कहीं न कहीं पार्टी के लिए ही नुकसानदायक साबित हो सकता है।

क्या कांग्रेस अपने एक ऐसे नेता को हाशिये पर धकेल रही है जो आज भी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं? क्या पार्टी अपने भीतर अलग विचारों और राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानने वाले नेताओं के लिए जगह नहीं रखना चाहती? यह सवाल आज हर उस व्यक्ति के मन में उठ रहा है जो शशि थरूर के बयानों को निष्पक्ष रूप से सुन रहा है।


कब समझेंगे ‘राष्ट्र पहले’ का महत्व?

शशि थरूर (Shashi Tharoor) के साथ जो हो रहा है, वह एक दुखद तस्वीर पेश करता है। यह दिखाता है कि आज भी राजनीतिक पार्टियाँ संकीर्ण सोच और विचारधाराओं के दायरे से बाहर निकलने में कितना हिचकिचाती हैं, भले ही मामला देश की सुरक्षा और सम्मान का हो। एक ऐसे समय में जब भारत को एकजुट होकर वैश्विक चुनौतियों का सामना करना है, अपने ही नेताओं को ‘राष्ट्र पहले’ कहने के लिए दंडित करना न सिर्फ अन्यायपूर्ण है, बल्कि देशहित के भी खिलाफ है। उम्मीद है कि कांग्रेस के नेतृत्व में बैठे लोग इस पर गहराई से विचार करेंगे और समझेंगे कि सच्ची देशभक्ति किसी पार्टी की सीमाओं से परे होती है। शशि थरूर का ‘अपमान’ कहीं न कहीं उस भावना का अपमान है जो हर भारतीय के दिल में अपने देश के लिए धड़कती है।

 

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